भीष्म साहनी की कहानियों का सामाजिक यथार्थ

 



                           भीष्म साहनी की कहानियों का सामाजिक यथार्थ

शुभम यादव


           भीष्म साहनी स्वातंत्र्योत्तर  हिन्दी कथा साहित्य के सामर्थ हस्ताक्षर हैउनका लेखन सामाजिक यथार्थ से गहरे जुड़ा है। आजादी के पूर्व प्रेमचन्द के कहानियों में सामाजिक यथार्थता दिखाई देती है। इसी परम्परा को यशपालमोहनराकेशकमलेश्वरभीष्म साहनी आदि ने आगे बढ़ाने का कार्य किया। भीष्म जी ने अपनी कहानियों में मध्यवर्गीय व्यक्ति के बनावटीपनस्वार्थपरताछलनादिखावापन आदि को बड़ी ही सूक्ष्मता से उद्घाटित किया है।

          चीफ की दावत’ कहानी की शुरूआत’ आज की मि0 शामनाथ के घर चीफ की दावत थी’ से होती है। शामनाथ के घर चीफ की दावत तैयारियां जोर-शोर से हो रही थी। लेकिन इसी बीच में एक शब्द आता है माँ,  माँ मानवीय सम्बन्धों की जड़ है लेकिन शामनाथ इस जड़ को उखाड़ देता है। ’मि0 शामनाथ श्रीमती की ओर घुमकर अंग्रेजी में बोले ’माँ का क्या होगा?’ शामनाथ अपनी पदोन्नति की स्वार्थपरता में इतना अंधा है कि वह अपने और माँ के सम्बन्धों को भूले जा रहे हैं। माँ उसके बनाये गये खोखले ढांचे में फिट नहीं हो पा रही है। क्योंकि शामनाथ ने इस ढांचे को अपनी महत्वाकांक्षा से बुना है। चीफ और माँ की मुलाकात में माँ एक मजाक बन कर रह जाती है। परन्तु शामनाथ का दृष्टिकोण माँ के व्यवहार के प्रति बदल जाता है। क्योंकि वह स्वार्थपरता की गुलामी में जकड़ा हुआ है और उसे पुनः माँ से एक फुलकारी प्राप्त करने की जरूरत है। पूरी कहानी शहरी जीवन में अर्थ की प्रधानता को उद्घाटित करती है और दिखाती है कि- 'अर्थ के लिए किस तरह मानवीय सम्बन्ध बन और बिगड़ रहे हैं।’

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          गंगो की जया’ कहानी में गंगो जिस इमारत पर काम करती थी उसकी निचली मंजिल तैयार हो चुकी थी। अब दूसरी मंजिल पर काम हो रहा था। गारे की टोकरियां उठाकर ले जाने वाला काम गंगो का थावह गर्भवती थी और उसे कुछ दिन में बच्चा होने वाला था। वह टोकरियां उठाने के लिए झुकी पर जमीन तक न पहुंच पायी। तभी ठेकेदार चिल्लया ’खड़ी देख क्या रही हैआगे जो पेट जो निकला हुआ था तो आयी ही क्यों थी?’ वह ठेकेदार से अनुनय-विनय करती है कि-छत पर ही पकड़ाने का काम दे दो वह कर लूंगी।’ गंगो की बात सुनकर ठेकेदार कहता है कि तेरे बाप का मकान बन रहा है जो जी चाहे करेगीचल दूर यहाँ से।’ इसी तरह गंगो के पति के द्वारा अपने छोटे से पुत्र को काम पर भेज देना आदि घटनाओं के द्वारा कहानीकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि-मानव पूंजीवादी व्यवस्था के कारण कितना असंवेदनशील होता जा रहा है। वह सिर्फ पूंजीवादी व्यवस्था का गुलाम बन कर रह गया है और कुछ नहीं।

          अमृतसर आ गया है’ कहानी दिखाना चाहता है कि किस तरह साम्प्रदायिकता समाज में हावी है और लोग डर की जिन्दगी जीने के लिए मजबूर है और धर्म की आड़ में मानव कितना साम्प्रदायिक होता जा रहा है।इसी तरह खून के रिश्ते’ कहानी में चाचा मंगलसेन के साथ दुव्र्यवहारय से मध्यवर्गी व्यक्ति की नैतिकतापुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच बन रहे सम्बन्धों आदि को तार-तार कर देती है।

          ये तो भीष्म साहनी के कहानियों के कुछ नमूने है। उनके अधिकांश कहानियों में इसे देखा जा सकता है। मार्क्सवादी दृष्टि से प्रभावित होने के कारण उन्होंने समाज को वर्ग दृष्टि से देखा है और इस पूंजीवादी व्यवस्था में शोषितों के साथ खड़े दिखायी देते हैं।

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