प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख


                                               

                                                  प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख


शुभम यादव

शोधार्थी

 हिन्दी विभाग

दिल्ली विश्वविद्यालय,दिल्ली

 

इतिहास लेखन की सवर्ण दृष्टि ने फातिमा शेख को इतिहास के गर्भ में विलुप्त कर दिया था किन्तु सबाल्टर्न इतिहासकारों ने इस सवर्ण लेखन की परंपरा के बरक्स अपने अतीत की खोज करनी शुरू की और फातिमा शेख का नाम एक बहुजन आइकन के रूप में दर्ज किया। इनका जन्म उन्नीसवीं शताब्दी में हुआ थायह सावित्री बाई फूले की सहयोगी थीं। जब फूले दम्पति ने ब्राह्मणवाद की विचारधारा को प्रश्नांकित करते हुए उस पर तमाम सवाल उठाएईश्वर पर प्रश्न चिन्ह लगायातत्कालीन समाज में प्रचलित ब्राह्मणों की सत्ता को चैलेंज कियामहिलाओंदलितोंशोषितों के लिये स्कूल खोले तथा समाज में फैली रूढ़ियों और अंधविश्वासों को समाप्त करने की पहल शुरू की तो सामाजिक दबाव के कारण फूले दम्पति को उनके घर वालों ने उन्हें घर से बाहर निकाल दिया। ऐसे समय में फूले दम्पति की सहायता करने के लिये आने वाला नाम फातिमा शेख और उस्मान शेख का था। उस्मान शेख फातिमा शेख के बड़े भाई थे। वे पुणे के गंज पेठ जिसका नाम आज पूना हो गया है में रहते थे व फूले दम्पति से काफी प्रभावित थे। उस्मान शेख और फातिमा शेख की सहायता से फुले दंपति ने पहला बालिका विद्यालय 1 जनवरी 1848 को फ़ातिमा शेख के घर में खोला था और थोड़े दिनों बाद पुणे के अन्य गांव में 18 और विद्यालय खोले जिसके चलते फातिमा शेख व फूले दंपति का धर्म के ठेकेदारों ने जमकर विरोध किया। उस्मान शेख ने फ़ातिमा शेख को महिलाओं को शिक्षित करने के लिए प्रेरित कियाफातिमा शेख पहले सावित्रीबाई फूले की शिष्या और बाद में उनकी सहयोगी बनी और सावित्रीबाई फूले के साथ लड़कियों को शिक्षित करने के कार्य में जुट गयी थीं। यह वह दौर था जब लड़कियों के बारे में यह मान्यता प्रचलित थी कि पढ़ लिखकर लड़कियां बिगड़ जाती हैंसमाज का उच्च तबका स्कूल भेजे जाने वाली लड़कियों के परिवारों को समाज से बहिष्कृत कर देता था जिसके चलते लोग अपने लड़कियों की पहचान छुपा कर विद्यालय भेजते थे। ऐसे समय में फ़ातिमा शेख अपने घर में खुले विद्यालय के लिए न केवल गांव-गांव घूमकर बच्चों को एकत्रित करने के लिए जाती थी बल्कि जो स्त्रियाँ विद्यालय आ पाने में सक्षम नहीं थीं वे उनके घरों में तथा जमींदारों के हरमों में जाकर स्त्रियों को शिक्षित करने का कार्य करती थी।  इसके चलते उन्हें सामाजिक घृणा का शिकार होना पड़ा‌ किन्तु इन सबकी परवाह किये बिना फातिमा शेख जनजागरण का कार्य करती रहीं। उनका नाम इतिहास में पहली मुस्लिम शिक्षिका के रूप में दर्ज है।

नारीशूद्रअतिशूद्र और मुस्लिम समाज में जब फ़ातिमा शेख ने शिक्षा का प्रचार प्रसार करने और लोगों को धार्मिक जकड़ बंदियों से दूर करने के लिए कार्य करना शुरू किया तो इससे आहत सामाजिक कठमुल्लों ने फातिमा शेख की हत्या करने का प्रयास किया व कुछ हत्यारे तैयार किए जो बाद में फातिमा के शिष्य बन गये। शिक्षा का प्रचार-प्रसार व सामाजिक जागरुकता फैलाने के कारण अंग्रेजों ने फ़ातिमा शेख को सम्मानित किया था।  फातिमा शेख की मदद से सावित्रीबाई फुले ने बाल हत्या प्रतिबंधक गृह खोला जिसमें अबोध संतानों को जो सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दी जाती थीउन्हें संरक्षण प्रदान किया जाता था। फातिमा ने मुस्लिम समाज में फैली तमाम कुरीतियों को रेखांकित किया और कठमुल्लापन के खिलाफ आवाज उठाई। उनके अदम्य साहस और महान कार्य का परिणाम है कि आज भारतीय नारी स्वतंत्र होकर अपने इतिहास और जीवन पर विचार कर रही है।

 


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