'रैदास': जाति-वर्ण और संप्रदाय के बरक्स
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‘ रैदास’: जाति-वर्ण और संप्रदाय के बरक्स भक्ति आंदोलन की उत्पत्ति कोई एकाएक नही हुयी थी बल्कि वह एक लम्बी प्रक्रिया का परिणाम था। इसकी जमीन अश्वघोष , नागार्जुन , सरहपा आदि लोग तैयार कर रहे थे। यह एक विराट जन आंदोलन था , जो जातीय भेदभाव , वर्चस्वाद और कठमुल्लापन के विरुद्ध समता समानता के विचारों पर आधारित था । ‘ गौतम बुद्ध की सामाजिक क्रांति के बाद मध्यकालीन इतिहास की यह दूसरी बड़ी क्रांति थी। बुद्ध के नवजागरण के बाद यह ऐसा लोकजागरण था जिसके चलते पहली बार हिंदू मुस्लिम समुदाय की निम्नवर्गीय जातियों के बीच से उनके , अपने साधु संत और महात्मा पैदा हुए , लोकज्ञानी विद्वान और रचनाकार पैदा हुए जिन्होने अखिल भारतीय स्तर पर अपने साहसिक प्रतिरोध से रक्त गोत्र की शुद्धता के मिथ्या दंभ पर आधारित वर्चस्ववादी विचार परंपरा के स्थापित मूल्यों को छिन्न भिन्न कर दिया। ’( लोक और वेद आमने सामने-चौथीराम यादव) मुक्तिबोध ने भक्ति आंदोलन की व्यापकता पर लिखा है कि ‘ उच्चवर्गीय और निम्नवर्गीय का संघर्ष बहुत पुराना है। यह संघर्ष निस्संदेह धार्मिक , सांस्कृतिक सामाजिक क्षेत्र में अनेकों रूपो