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Showing posts from February, 2021

प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख

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                                                                                                  प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख शुभम यादव शोधार्थी   हिन्दी विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय , दिल्ली   इतिहास लेखन की सवर्ण दृष्टि ने फातिमा शेख को इतिहास के गर्भ में विलुप्त कर दिया था किन्तु सबाल्टर्न इतिहासकारों ने इस सवर्ण लेखन की परंपरा के बरक्स अपने अतीत की खोज करनी शुरू की और फातिमा शेख का नाम एक बहुजन आइकन के रूप में दर्ज किया। इनका जन्म उन्नीसवीं शताब्दी में हुआ था ,  यह सावित्री बाई फूले की सहयोगी थीं। जब फूले दम्पति ने ब्राह्मणवाद की विचारधारा को प्रश्नांकित करते हुए उस पर तमाम सवाल उठाए ,  ईश्वर पर प्रश्न चिन्ह लगाया ,  तत्कालीन समाज में प्रचलित ब्राह्मणों की सत्ता को चैलेंज किया ,  महिलाओं ,  दलितों ,  शोषितों के लिये स्कूल खोले तथा समाज में फैली रूढ़ियों और अंधविश्वासों को समाप्त करने की पहल शुरू की तो सामाजिक दबाव के कारण फूले दम्पति को उनके घर वालों ने उन्हें घर से बाहर निकाल दिया। ऐसे समय में फूले दम्पति की सहायता करने के लिये आने वाला नाम फातिमा शेख और उस्मा

‘श्रृंखला की कड़ियाँ’: स्त्री-मुक्ति का दस्तावेज

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  ‘ श्रृंखला की कड़ियाँ ’:  स्त्री-मुक्ति का दस्तावेज                                                                                                                                                                                                                                 शुभम यादव                                                दुनिया के इतिहास में देखें तो एक विशेष बात यह दिखायी देती है कि स्त्रियों के बारे में अधिकांश नियम-कानून पुरुषों द्वारा ही बनाये गये हैं ,  जबकि सामाजिक निर्माण की भूमिका में पूरी सक्रिय भागीदारी के बावजूद वे निर्णय लेने से दूर रहीं व दोयम दर्जे की नागरिक बनी रहीं। भारतीय समाज के मूल में ये चीजें गहरी समायी हुयी हैं। पितृसत्तात्मक समाज ने स्त्री को रमणी ,  वामा ,  देवी आदि माना है पर उसे कभी स्वतंत्र मनुष्य मानकर फलने-फूलने नहीं दिया बल्कि ऐसा अगर हुआ भी तो उसके साथ पौराणिक मान्यतायें जोड़ दैवीय घटना सिद्ध करने की कोशिश की गई। राजेन्द्र यादव ने भारतीय समाज की स्त्रियों के बारे लिखा है कि  ‘ मूलतः इस समाज में स्त्री की न अपनी कोई जाति है ,  न नाम और न अपनी इ